तुम्हें मालूम है
तुम्हें मालूम है - बहुत पहले
बहुत बहुत पहले
मैंने तुम्हें इक ख़त लिखा था
रीते मन के अवशेषों को
सर्द हवा में पिरो पिरो
सूखे पत्तों की सरसराहट से
इक नन्हा सा ख्वाब चुरा के
मैंने तुम्हें इक ख़त लिखा था।
कितनी सदियाँ गुजारीं हैं
उस ख़त के इंतज़ार में मैंने
तुम्हे मालूम है? तुम्हें नहीं मालूम!
ठंडी सर्द हवा के आँचल में बंधा मेरा ख़त
खंडित सव्पन को साथ लेकर
आज वापिस लौट आया है।
बरसों बरसों भटक के भी
तुम्हारा पता नहीं मिला हवा को
मेरा ख़त आज वापिस लौट आया है।
कहाँ? किस पते पर भेजूं उस ख़त को अब?
मुझे नहीं मालूम!
तुम्हें मालूम है?