Mirrors and Echos

Wednesday, February 14, 2007

मैं गूंगी सी हो जाऊंगी

तुम कहीं अचानक मिल जाओ
मैं भावविभोर हो जाऊंगी
तुम बात करोगे अंतराल की
मैं गूंगी सी हो जाऊँगी

कुछ देर बाद जब तुम मुझसे
मेरे बारे में पूछोगे
सचमुच मैं दर्द तनहाइयों का
उस ही पल भूल जाऊँगी

क्या खोया क्या पाया तुमने
तुम हिसाब लगाने बैठोगे
क्या पाऊँगी मैं तुमको पाकर
मैं यही सोचती रह जाऊँगी

तुम चुप चुप से मैं गमसुम सी
इक पल ऐसा भी आएगा
जब तुम होंठों के कम्पन से
मैं आंखों से सारा दर्द कह जाऊंगी